अधूरी ख्वाहिशों का घर
उम्र का सफर और रिश्तों की उलझन, यह कहानी तीन लोगों के बीच के जटिल रिश्ते की है, जो उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर अपनी-अपनी ख्वाहिशों और जिम्मेदारियों के साथ जी रहे थे। आदित्य 28 साल का था, ज़िंदगी को मस्ती और दोस्ती में जीने वाला। वासु 27 का था, थोड़ा अंतर्मुखी और भावनात्मक, जबकि प्रियंका 29 की परिपक्व और आत्मनिर्भर महिला थी। उम्र का यह मामूली फासला उनके रिश्तों में बड़ा असर डालने वाला था। तीनों की जिंदगी का सफर, जो दोस्ती से शुरू हुआ था, प्यार, त्याग और एक अनोखे बंधन में बदल गया।
आदित्य और वासु: कॉलेज की दोस्ती। आदित्य और वासु कॉलेज के दिनों के गहरे दोस्त थे। वासु पढ़ाई में तेज, जिम्मेदार और थोड़ा अंतर्मुखी था, जबकि आदित्य मस्तमौला और मजाकिया। वासु ने हमेशा आदित्य का साथ दिया, चाहे वह परीक्षा की तैयारी में मदद हो या बीमार होने पर ठंडी पट्टियां रखना।
एक बार परीक्षा के दौरान, वासु ने मजाक में कहा, “अगर तू मेरी पानी की बोतल एक महीने भर देगा, तो मैं तुझे अपने नोट्स दे दूंगा।”
आदित्य ने यह शर्त मान ली और पूरे महीने बिना शिकायत वासु की बोतल भरता रहा। यह छोटी-सी बात दिखाती थी कि आदित्य अपने वादों का पक्का था।
एक और वाकया टेबल टेनिस खेलते समय हुआ। आदित्य ने वासु से कहा, “अगर मैं हार गया, तो मेरी शादी के बाद मेरी पत्नी तुम्हारे साथ पहली रात बिताएगी।”
वासु ने इसे मजाक समझकर स्वीकार कर लिया। आदित्य हार गया, और यह शर्त कॉलेज की यादों में कहीं दब गई।
प्रियंका का आगमन कॉलेज के बाद, आदित्य और प्रियंका की मुलाकात ऑफिस में हुई। प्रियंका आत्मनिर्भर और स्पष्ट विचारों वाली महिला थी। आदित्य उसकी सादगी और आत्मविश्वास से प्रभावित हुआ। दोनों की दोस्ती हुई और फिर प्यार में बदल गई।
शादी से पहले, दोनों ने कभी-कभी शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन आदित्य ने हमेशा सुरक्षा का ध्यान रखा। वह शादी से पहले बच्चा नहीं चाहता था।
शादी और पहली रात: शर्त का सच।
शादी के बाद, वासु समारोह में शामिल होने के लिए घर आया। पहली रात के बाद आदित्य ने मजाक में वासु से कहा “याद है हमारी शर्त? अब तुम्हारी बारी है।”
वासु ने हंसकर टालने की कोशिश की, लेकिन प्रियंका ने गंभीरता से जवाब दिया “शर्त तो शर्त होती है।”
वासु ने संकोच करते हुए आदित्य को याद दिलाया कि यह मजाक का हिस्सा था। लेकिन आदित्य, जो अपनी बात का पक्का था, बोला, “मैंने जो कहा, वह पूरा करूंगा। तुम दोनों इस बारे में सोचना भी मत, बस इसे एक बार की बात समझो।”
वासु और प्रियंका उस रात शारीरिक रूप से करीब आए। दोनों ने शुरुआत में इसे अनमने मन से किया, लेकिन जल्द ही उनके बीच भावनात्मक जुड़ाव पैदा हुआ।
पहली संतान: प्रियासु।
वासु और प्रियंका का रिश्ता गहराने लगा। दोनों के बीच हर रात उच्च ऊर्जा वाला शारीरिक संबंध होता। वे घंटों एक-दूसरे के साथ रहते, खाना बनाते, साथ में नहाते, और कई बार तो आदित्य उन्हें एक ही तौलिया में लिपटा देख लेता। उनके बीच का यह जुनून इतनी जल्दी रंग लाया कि एक महीने के भीतर प्रियंका गर्भवती हो गई।
जब बच्चे का जन्म हुआ, तो प्रियंका ने उसका नाम “प्रियासु” रखने का प्रस्ताव रखा।
“प्रियासु हमारे प्यार का प्रतीक है। यह नाम हमारे रिश्ते की खूबसूरती को दर्शाएगा।” प्रियंका ने वासु से कहा।
वासु ने सहमति दी, और आदित्य ने अनिच्छा से इसे स्वीकार किया।
दूसरी संतान: विदि।
पहले बच्चे के जन्म के एक साल बाद, प्रियंका ने फिर से गर्भवती होने की खबर दी। इस बार भी यह वासु का बच्चा था।
जब बेटी का जन्म हुआ, तो उसका नाम “विदि” रखा गया। यह नाम वासु की मां का था। वासु ने कहा, “मेरी मां हमेशा चाहती थीं कि मैं अपने बच्चों के नाम में उनकी छवि देखूं।” प्रियंका ने इस भावना का सम्मान किया और नाम पर सहमति जताई।
हालांकि, आदित्य अब पूरी तरह से अकेला महसूस कर रहा था। वह ड्राइंग रूम में सोता, जबकि प्रियंका और वासु अपने कमरे में रहते।
जुड़वां बच्चे: अन्वेषा और विराज।
दूसरे बच्चे के एक साल बाद, प्रियंका ने एक बार फिर से गर्भवती होने की बात बताई। इस बार वह वासु के साथ इतनी गहराई से जुड़ चुकी थी कि आदित्य का विरोध अब कोई मायने नहीं रखता था।
वासु और प्रियंका की दिनचर्या अब पूरी तरह से एक हो चुकी थी। वे अक्सर रसोई में साथ खाना बनाते, नहाने के दौरान एक-दूसरे को साबुन लगाते, और बिस्तर पर एक-दूसरे के साथ घंटों समय बिताते। कई बार आदित्य ने उन्हें नहाते या कपड़े बदलते समय भी एक-दूसरे को चूमते हुए देखा, जिससे उसका दिल और टूट जाता।
इस बार प्रियंका जुड़वां बच्चों की मां बनी। बच्चों के नाम प्रियंका के माता-पिता के नाम पर “अन्वेषा” और “विराज” रखे गए।
आदित्य का त्याग और बच्चों की देखभाल। वासु और प्रियंका अपने रिश्ते और प्यार में इतने मशगूल रहते थे कि बच्चों की जिम्मेदारियों का पूरा भार आदित्य के कंधों पर आ गया। वह बच्चों को स्कूल ले जाता, उनके होमवर्क में मदद करता, और उनकी हर जरूरत का ध्यान रखता।
जब प्रियंका और वासु अपने समय का आनंद ले रहे होते, आदित्य अकेले बच्चों के साथ खेलता, उनकी गंदी चादरें और कपड़े धोता। वह उनके हर छोटे-बड़े काम में पूरी लगन से जुटा रहता।
हर साल एक नया बच्चा, इसके बाद वासु और प्रियंका ने हर साल एक नया बच्चा पैदा किया। यह सिलसिला चलता रहा, और उनके परिवार में कुल 15 बच्चे हुए।
प्रियासु, विदि, अन्वेषा, और विराज के साथ-साथ बाकी बच्चे भी आदित्य को केवल एक अंकल के रूप में देखते थे। उनकी पूरी पहचान वासु और प्रियंका के प्यार का प्रतीक थी।
सच का सामना।
सालों बाद, जब बच्चे बड़े हुए, तो प्रियंका और वासु ने उन्हें सच्चाई बताई।
प्रियासु ने कहा, “हमें हमेशा से पता था कि वासु ही हमारे असली पिता हैं।”
विदि ने कहा, “आदित्य अंकल अच्छे हैं, लेकिन वासु पापा हैं।”
बच्चों ने वासु को पिता का दर्जा दिया और आदित्य को उनके जीवन में केवल एक मेहमान के रूप में स्वीकार किया।
यह कहानी प्यार, त्याग, और रिश्तों की जटिलता का एक अनोखा उदाहरण है।
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